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词条 Draft:Jaimini sutram
释义

  1. References

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स्थुलादर्श -वैषम्याश्रयो मण्डूकस्त्रिकूटः

स्थुल का अर्थ है प्रथम (लग्न ) और आदर्श का अर्थ सप्तम है। इसीलिए लग्न सप्तम में जो राशि हो उससे मंडूक दशा की प्रवृत्ति होती है। यह त्रिकूट क्रम से अर्थात चार,स्थिर,द्विस्वभाव राशि के क्रम से अथवा केंद्र,पणफर, आपोक्लिम के क्रम से होती है। भाव यह है की मंडूक दशा में पहले चर राशि की फिर स्थिर राशि की उसके बाद द्विस्वभाव राशि की होती है। अथवा पहले केंद्र गत , बाद में पणफर की उसके बाद आपोक्लिम की दशा होती है। यहाँ बी विषम और सम राशि के भेद से क्रम तथा ुत्क्रम गणना होती है। जैसे "विषमे तु तदादिः स्यात समे युतक्रमतः स्मृतः। बलि राशि यदि सम हो तो उससे सप्तम राशि से विलोम गणना करनी चाहिए अतः कहा गया है "युगमे ततसप्तमं नयेत। स्त्री के जन्म पत्र में केवल सप्तम राशि से दशा की प्रवृत्ति कही गयी है जैसे "स्त्रीचेद दर्पणतो नयेत।।

मंडूक दशा का क्रम दो तरह का होता है। एक चरादि राशि के अनुसार और दूसरा केन्द्रादि राशि के अनुसार। चरादी राशि के क्रम में चरदशा का ७ वर्ष, स्थिर का ८ और द्विस्वभाव का ९ वर्ष दशा का मान होता है। केन्द्रादि दशा के क्रम में सभी राशियों के दशा वर्ष ९ कहे गए है --

मान लिया की मेष लग्न है और उसमे मंगल है। मेष से सप्तम में तुला राशि में गृह नहीं है अतः लग्न सप्तम में मेष राशि बली हुई। मेष विषम राशि है इसीलिए करम गणना होगी। पहले चर -मेष,कर्क,तुला और मकर की क्रम से दशा हुई। बाद में स्थिर - वृष, सिंह,वृश्चिक और कुम्भ कि , उसके बाद द्विस्वभाव - मिथुन , कन्या , धनु, और मीन की दशा हुई। चर के दशा वर्ष ७, स्थिर के ८, और द्विस्वभाव के ९ वर्ष होते है।

-मंडूकदशाचक्र-

राशयः मेष कर्क तुला मकर वृष सिंह वृश्चिक कुंभ मिथुन कन्या धनु मीन

दशावर्ष 7 7 7 7 8 8 8 8 9 9 9 9

वयोगत वर्ष 7 14 21 28 36 44 52 60 69 78 87 96

यदि लग्न सप्तम में बली राशि सम हो तो उससे या उससे सप्तम राशि से विलोम क्रम से उक्त रित्या मंडूक दशा होती है। मान लिया की कर्क लग्न है और उससे सप्तम मकर है , दोनों में कर्क बली है वह सम चर राशि है अतः उत्क्रम रीती से कर्क,मेष,मकर,तुला,मिथुन,मीन,धनु,कन्या,वृष,कुम्भ,वृश्चिक,और सिंह की दशा हुई।

यदि कर्क से सप्तम राशि मकर से विलोम दशा लेनी हो तो - मकर,तुला,कर्क,मेष,धनु,कन्या,मिथुन,मीन,,वृश्चिक सिंह वृष और कुम्भ की दशा होगी

- अन्तर्दशा क्रम -

जिस राशि के दशा वर्ष सात है उसकी दशा में दशा क्रमानुसार प्रत्येक राशि की अंतर दशा ७ मास कि,८वर्ष वाली दशा में ८ मास की और ९वर्ष की दशा में ९ मास की अंतर दशा होगी। जैसे मेष की दशा में द्वादश राशियों की अंतर दशा नीचे चक्र में स्पष्ट है।

-अन्तर्दशा चक्र-

राशयः मेष कर्क तुला मकर वृष सिंह वृश्चिक कुंभ मिथुन कन्या धनु मीन

अन्तर्दशा 7 7 7 7 7 7 7 7 7 7 7 7

वयोगत वर्ष 0|7 1|2 1|9 2|4 2|11 3|6 4|1 4|8 5|3 5|10 6|5 7|00

केन्द्रादि क्रम से मंडूक दशा--

उक्त उदाहरण मेष बाले है अतः केन्द्रादि क्रम से भी वही हुई। दोनों क्रम में बीच की दो राशि छोड़नी पड़ती है। इसीलिए दोनों क्रम समान ही ही होते है। जैसे मिथुन द्विस्वभाव विषम है इसीलिए क्रम से पहले द्विस्वभाव मिथुन,कन्या,धनु और मीन की दशा होगी। मिथुन से चौथी कन्या ७ वी धनु और १० वी मीन होने से केंद्र गाठ राशियों की दशा भी यही हुई. पाराशर के अनुसार १/५/९ का क्रम है उससे भिन्नता होती है -जैसे मेष की पहली दशा तो उससे पंचम और नवम दूसरी और तीसरी दशा हुई। इसमें भी चर स्थिर और द्विस्वभाव का क्रम है परन्तु चार पद ३-३ राशियों का बनाकर प्रथम में चार से आरम्भ , द्वितीय में स्थिर तृरतीय में द्विस्वभाव से और चतुर्थ में फिर चर से पद का प्रारम्भ होता है। उदाहरण चक्र से स्पष्ट है।

केन्द्रादि मंडूक दशा चक्र

राशयः मेष कर्क तुला मकर वृष सिंह वृश्चिक कुंभ मिथुन कन्या धनु मीन

दशावर्ष 9 9 9 9 9 9 9 9 9 9 9 9

वयोगत वर्ष 9 18 27 36 45 54 63 72 81 90 99 108

References

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