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释义

नासदीय सूक्त -

ऋषि = परमेष्ठी प्रजापति

देवता = परमात्मा

छंद = त्रिष्टुप

नासदीय सूक्त में जब कोई नामरूप अवस्था नहीं थी तब क्या था ? न कोई लोक था ? न कोई आकाश | ऊपर हे वो क्या हे ? किसने रचना की ? यह अपार जल ही था |तब नहीं मृत्यु थी न ही अमरत्व था ,तब रात और दिन के भेद का ज्ञान नहीं था |तब वह अपनी इच्छा से श्वास ले रहा था |चारो तरफ गहन अंधकार था |इस सम्पूर्ण जगत में जल से भिन्न कोई साधन नहीं था | उनकी तपस्या के द्वारा वह एक बीज रूप उत्पन्न हुआ |उसमे सर्वप्रथम काम का विकार उत्पन्न हुआ |जिसके द्वारा सम्पूर्ण जगत को नामरूप कारण प्राप्त हुआ |उनका कार्य जाल किरणों की तरह फैला हुआ था | क्या वह मध्य ,ऊपर या निचे थे | वह सृष्टि का बीज धारण करने वाले वह पंचमहाभूत थे |निचे भोग्य ऊपर भोक्ता ,कोन इसके बारे में जानता हे |यह कहा से उत्पन्न हुई ? देवता भी सृष्टि से अर्वाचीन हे |तब कौन जानता हे की यह सृष्टि की उत्पति कैसे हुई ? अगर कोई जानता हे तो वो कौन हे ?

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