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词条 Draft:ज्योतिष तथा साधना
释义

ज्योतिष एवं साधना हमेशा एक दूसरे के पूरक रहे है, साधकों की यही रुचि होती है कि क्या उनकी साधना उचित है,क्या उनको,उनकी की गई साधना में सफलता मिलेगी,या उनको, उनकी साधना से मोक्ष प्राप्त होगा।सभी ज्योतिषी अपने ज्योतिष ज्ञान की पूर्णता के लिए ज्योतिष के विविध आयामों की साधना किया करते है।साधना क्या है,जीवन अपने आप में एक साधना ही तो है, हर व्यक्ति किसी ना किसी वस्तु का या भोग का साधन करना चाहता है, कोई वैज्ञानिक है, कोई गणितज्ञ है, कोई शिक्षक है,कोई खिलाड़ी है, यह सब अपने अपने क्षेत्रों में पूर्णता प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहते है।यह सभी अपने क्षेत्र में निरंतर प्रयत्नशील है,यही इनकी साधना है, इसी प्रकार आध्यात्मिक साधना के द्वारा मनुष्य अपने जीवन सभी कष्टों को दूर करके भोग तथा मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

ज्योतिष के माध्यम से हम यही जानने की कोशिश करते है कि किस इष्ट की साधना हमें फल देगी या किस प्रकार की साधना जैसे की योग साधना,मंत्र साधना,वैदिक साधना,तांत्रिक साधना,आदि में से कौनसी साधना हम पूर्व जन्मों में करते आए है, तथा उनमें से कौनसी अब हमे आगे करनी है, जिससे जीवन का उद्देश्य पूरा किया का सके।

शक्ति साधना का सभी प्रकार की साधनाओं में विशिष्ट स्थान है,

शक्ति का तात्पर्य स्त्री देवता से नहीं है,अपितु इस संसार को संचारित करने वाली,सूर्य में जो अग्नि तत्व है,तथा चंद्र में जो शीतलता है,जिसने सारे ब्रम्हांड को एक लय में बांध रखा है,वह शक्ति है।जिसे हम दुर्गा, काली,भुवनेश्वरी,अलग अलग नाम से बुलाते है।ये सभी एक ही आद्या शक्ति के विभिन्न रूप है,जो उसने इस संसार की रचना और इसके संचार हेतु धारण किए है।

हम जिस पाराशक्ति की बात कर रहे हैं, जिस शक्ति कि हम साधना करते हैं, यह नवग्रह भी उसी शक्ति के विभिन्न तत्वों के स्वरूप हैं, शक्ति के विभिन्न तत्वों को ही शक्ति ने नवग्रहों के रूप में बनाया है। विभिन्न ग्रहों द्वारा धर्म ,अधर्म ,सत्य, असत्य, लोभ, मोह, क्रोध, अहंकार, सत,रज, तम, यह सभी गुण जो उनकी पहचान है, जिनका वह प्रतिनिधित्व कर रहे हैं यह सब उन्हें शक्ति द्वारा ही प्रदान किए गए हैं ।जन्म कुंडली में विभिन्न ग्रहों की अवस्था द्वारा यह जानना कि जातक हेतु कौन सी साधना उचित है तथा किस प्रकार की साधना द्वारा, और किस इष्ट की साधना द्वारा यह जातक अपने इस जीवन को पूर्ण कर सकता है यह जानना शोध का विषय है।

ज्योतिष विद्या में भी इष्ट का बड़ा महत्व है,तथा इससे जानने के अलग अलग नियम होते है जो हमें ज्योतिष में देखने को मिलते है, यदि सही इष्ट मनुष्य को प्राप्त हो जाए तो उसके अधिकतम दुखों का वैसे भी निराकरण हो जाता हैं।

ज्योतिष विद्या में इष्ट के निर्धारण हेतु,लग्न, पंचम, तथा नवम भाव,का विश्लेषण किया जाता है, इसमें विंशांश कुंडली का भी बड़ा महत्व है, इन सभी में अधिक बली ग्रह के आधार पर इष्ट का निर्धारण किया जाता है।

जैसे की सूर्य से गायत्री साधना,विष्णु, शिव,दुर्गा, स्वर्णाकर्षण भैरव ,इत्यादि देवताओं की साधनाएं सफल होती है,अब यह देखना बड़ा आवश्यक है कि सूर्य की अन्य किन ग्रहों से संबंध करता है,इससे कुछ और भी देवी देवता सम्मिलित हो जाते हैं, जैसे सूर्य यदि शुक्र के साथ हो तो जातक श्री विद्या का भी अच्छा साधक हो सकता है।

इसी प्रकार यदि हम चंद्र को देखें तो,चंद्र द्वारा लक्ष्मी, शिव और श्री विद्या, तथा सौम्य विद्याओं की जो साधनाएं हैं, वह अधिक सफलता देते हैं,और यही चंद्र यदि गुरु के साथ हो तो व्यक्ति, दत्तात्रेय,राम ,कृष्ण, भुवनेश्वरी, बगलामुखी,इत्यादि साधना में सफलता प्राप्त करता है। ऐसे जातक को कुबेर आदि साधनाएं भी अच्छा फल देती है।

किसी भी साधना की सफलता के लिए कर्मकांड, यज्ञ,वेद आदी का ज्ञान होना बहुत आवश्यक होता है,तथा यज्ञिक और वैदिक उपासनाओं के लिए बृहस्पति का शुभ होना अति आवश्यक है, यदि बृहस्पति अशुभ भावों में हो, 6वा,8वा या 12वा में हो तो साधनाएं पूर्ण नहीं हो पाती, या उनका पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता, बृहस्पति का शुभ होना  किसी भी साधना के लिए आवश्यक है,वह किसी भी देवी देवता की हो, उस पूरा करने के लिए ज्ञान तथा विवेक, और पूजा कर्म बृहस्पति से ही प्रदान होता है।

बृहस्पति योग साधना, सरस्वती,बगलामुखी,विष्णु, शिव,दत्तात्रेय आदि प्रकार को साधना प्रदान करता है।संस्कृत आदि का अच्छा उच्चारण करने के लिए भी आपकी कुंडली में गुरु की स्थिति शुभ होनी चाहिए ।

इसी प्रकार कुंडली में जो ग्रह मुख्य रूप से कठिन तपस्या,कठिन नियम को पूर्ण करने की क्षमता देने वाला, तथा बृहस्पति के ही भांति जरूरी,भगवान शिव के श्रेष्ठ साधकों में से एक मृत संजीवनी का वरदान प्राप्त करने वाला शुक्र,इसका भी कुंडली में शुभ होना और बली होना किसी प्रकार की साधना के लिए अत्यंत आवश्यक है, तथा वह शुक्र ही है जो हमको साधना करने के लिए अनुशासन देता है, तथा हमें प्रतिबद्ध करता है ।

शुक्र द्वारा तंत्र साधना,मृत्युंजय शिव, काली, दुर्गा,लक्ष्मी,श्री विद्या,मातंगी,शाकंभरी,हेरंब गणेश की साधना प्राप्त होती है,यदि शुक्र राहु केतु के साथ हो तो क्षुद्र शक्तियों की साधना जातक करता है।

मंगल जो सेनापति है अपने साहस के लिए जाने जाते है,तथा कुछ विशिष्ट साधनाओं को करने का साहस मंगल ग्रह की प्रसन्नता से ही प्राप्त होता है।

मंगल द्वारा हनुमान,वीरभद्र,भैरव,नवदुर्गा,की साधना प्रदान होती है।

बुध जो को अलौकिक संसार को देखने की क्षमता प्रदान करता है,जो वाणी का संचालक है,तथा जातक ईश्वर की स्तुति करके उन्हें प्रसन्न कर सके यह बुध कि कृपा से ही संभव हो पाता है।

बुध के द्वारा श्री गणेश,सरस्वती,विष्णु,गंधर्व साधना आदि सफल होती है।

शनि देव जिनके नाम से सभी भयभीत रहते है,जो दंड देने के अधिकारी है,तथा मनुष्य को वैराग्य का पाठ पढ़ाते है,इनके कृपा से ही व्यक्ति संसार से विरक्ति हो अपने इष्ट में मन लगा पाता है।

शनि द्वारा काली, तारा,आसुरी दुर्गा,भैरव आदि साधना प्राप्त होती है।

इसी प्रकार कुंडली के द्वारा उचित मार्गदर्शन प्राप्त करके, जातक अपने लिए उचित इष्ट का निर्णय करके, और सही साधना करके अपने जीवन के सभी दुखों से छुटकारा पा सकता है।

शक्ति साधना में जन्म कुंडली के सभी कुयोगों को नष्ट करने कि क्षमता है।

कुंडली में ग्रहों की अवस्था के अनुरूप उचित शक्ति का चयन करके साधक उसकी साधना करके अपने सभी पपफलो को भस्म करके संसार के भोग भोगकर भी मोक्ष प्राप्त करता है।

संसार में शक्ति साधना द्वारा हि मनुष्य धर्म,अर्थ काम मोक्ष को सिद्ध करके अपने जीवन को सफल बना सकता है।

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