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词条 Draft:Bruhat sanhita
释义

  1. References

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वृक्षायुर्वेद

प्रयोजन

वापी,कूप,तालाबा आदि जलाशयों के प्रणता छायारहित हो तो सुन्दर नहीं होता है, अतः जलाशयों के किनारे पर बगीचा लगावे।

बगीचा लगाने के लिए भूमि:-

सब वृक्षों के लिए कोमल भमि अच्छी होती है। तथा जिस भूमि में बगीचा लगाना हो उसमे पहले तिल बोवे, जबा वे तिल फूल जावे तबा उनको उसी भूमि में मर्दन कर दे। यह भूमि का प्रथम कर्म है।

बगीचे में पहले लगाने के वृक्ष :-

पहले बगीचे या घर के समीप में शुभ करने वाले नीम्ब,अशोक,पुन्नाग,शिरीष ,प्रियंगु इन वृक्षों को लगाए।

कलमी वृक्ष लगाने का प्रकार :-

कटहर,अशोक,केला,जामुन,बडहर ,दाड़िम, दाख, पॉलीवत, बिजौरा , अति मुक्तक इन वृक्षों की शाखाओ को लेकर गोबर से लीप कर कटे हुए विजातीय वृक्ष की मूल या शाखा पर लगावे। यह कलम लगाने का प्रकार है।

वृक्षों को रोपने का काल :-

अजातशाखा अर्थात कलमी से भिन्न वृक्षों को शिशिर में कलमी वृक्षों को हेमंत में और लम्बी लम्बी वाले शाखा वाले वृक्षों को वर्षा में लगावे

वृक्षों को रोपने का नियम :-

घृत,खास,तिल,शहद,विडंग,दूध,गोबर इन सब को पीस कर मूल से लेकर अगर पर्यन्त लेप कर वृक्ष को एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान में लगावे।

वृक्ष रोपने की विधि :-

पवित्र होकर स्नान , चन्दन आदि से वृक्ष की पूजा कर के दूसरे स्थान में लगावे, इस तरह लगाने से उन्ही पत्रों से युत वृक्ष लग जाता है अर्थात सूखता नहीं।

वृक्षों को सींचने का प्रकार :-

लगाए हुए वृक्षों को ग्रीष्म ऋतु में साँझ सवेरे शीट काल में एक दिन बाद और वर्षा ऋतु में भूमि सूखने पर सींचना चाहिए।

जल प्राय देश में होने वाले वृक्ष :-

जामुन,वेत,वानीर,कदम्ब,गूलर,अर्जुन,बिजौरा,दाख,बडहर,दाड़िम,तेंदुआ,नक्तमाल,तिलक,कटहल,तिमिर,अम्बाडा,ये सोलह वृक्ष बहुत जल वाले प्रदेश में होते है।

वृक्ष लगाने का क्रम :-

एक वृक्ष से दूसरा वृक्ष बीस हाथ पर लगाना चाहिए उत्तम सोलह हाथ पर मध्यम , और बारह हाथ पर लगाना अधम है।

अच्छी तरह फल न देने वाले वृक्ष :-

यदि एक वृक्ष दूसरे वृक्ष के समीप हो परस्पर स्पर्श करता हो या दोनो की जेड इकठ्ठी हो तो वे वृक्ष पीड़ित होते है और अच्छी तरह फल नहीं देते।

अधिक शीत वायु और धुप लगाने से वृक्षों लो रोग हो जाता है , रोगी वृक्षों के पत्ते पीले पड जाते है, अंकुर नहीं बढ़ते डालियाँ सुख जाती है और रास टपकने लगता है।

वृक्षों की चिकित्सा :-

इन रोगी वृक्षों की चिकित्सा करनी चाहिए। पहले वृक्ष का जो अंग पूर्वोक्त विकार युत हो उसको शास्त्र से काट डेल, फिर वायविडंग,घृत पंक (कीचड़ =कीच )को मिला कर वृक्षो में लेप करे बाद दूध मिश्रित जल सींचे।

फल नाश चिकित्सा :-

वृक्ष में फल लगे तो कुलथी, उड़द मुंग,तिल जौ , इन सब को दूध में डालकर औटावे बाद में उस दूध को ठंडा कर उससे फल फूलो की वृद्धि के लिए सींचे

वृक्षों को बढ़ने के लिए प्रयोग :-

भेद और बकरी की मींगनी का चूर्ण दो आढ़क , तिल एक आढ़क, सत्तू एक प्रस्थ , जल एक द्रोण, गौ मांस एक तुला िसँ सबको मिला कर एक पात्र में ७ रात तक रखे, बाद फल फुलू की वृद्धि के लिए वृक्ष गुल्म और लताओं को सींचे।

References

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